जादूगर
जादूगर तुम अनोखे हो निराले हो ।
शिकारी, शिकार को बनाने वाले हो ॥
दो देखने की आदत अपनी बहुत पुरानी ।
जादू चला तुम्हारा हुई आँखें ऐंची तानी ॥
पक गये हो पूरे, शहतूत से हो मीठे ।
अंगूर क्या अंगूरी, तेरे लिये सब सीठे ॥
मिमियाते थे जो अब तक जम कर गरज रहे हैं ।
कैसे मोगरे के तन से गुलाब जम रहे हैं ॥
तन के चलने वाले जाते हैं सर झुकाये ।
खामोश रहने वाले अब हैं आस्मां उठाये ॥
जहालत मे क़ैद थे जो हो गये हैं ग्यानी ।
संजीदा हो गये हैं जादू से आसमानी ॥
जो तलवार सजाते थे कल जंगे-मैदान में ।
अब लफ़्ज़ों के वार करते और सिर्फ़ कान में ॥
जादू चला है तेरा चींटी का वक़्त आया ।
खौफ़ में हैं हाथी जो उनको सदा सताया ॥
जादू न समझो इसको, ज़ुल्म से है जंग ।
बदल रहे हैं देखो, तक़दीर के वो ढंग ॥
लफ़्ज़ों में मत उलझना, ताकीद है ये उनकी ।
याद रहे हमेशा, बस सुनो ज़बान हक़ की ॥