हंगामे रात के
हम आ गए चूँकि हंगामे में रात के
ले आये क्या-क्या दरया से रात के
रात के परदे में है वो छिपा हुआ गवाह
दिन भला बराबर में है कब रात के
सोना चाहेगा नहीं, नींद से करे गुरेज़
जो कि देखे नहीं उसने तमाशे रात के
जान बहुत पाक और बस पुरनूर दिल
बँधा रहा, लगा रहा, बन्दगी में रात के
रात तेरे आगे है जैसे काली पतीली
क्योंकि चखे नहीं तूने हलवे रात के
लम्बी ये राह है रफ़्तार दे मेरे यार
लम्बाइयाँ हैं और चौड़ाइयाँ हैं रात के
हाथ मेरे बन्द हैं सब काम-काज से
सुबह तलक हाथ मेरे हवाले रात के
पेशावरी कारोबार है अगर दिन का
लुत्फ़ अलग हैं ब्योपार के रात के
मुझे फ़ख़्र अपने शम्सुद्दीन तबरेज़ी पर
हसरतें दिन की तू तमन्ना रात के