तौबा

तौबा

जो उमर गुज़र गई, जड़ उसकी है ये दम
सींचो तौबा से उसे, गर रही नहीं है नम

उस उमर की जड़ को दो आबे-हयात ज़रा
ताकि वो दरख़्त हो जाय फिर से हरा-भरा

सब माज़ी तेरा इस पानी से सुधर जाएगा
ज़हर पुराना सब इस से शक्कर हो जाएगा
(दम=साँस,पल, आबे-हयात=अमृत,
माज़ी=भूत-काल)

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